कहाँ हैं

ये कैसी है आंधी ये कैसा है मौसम, मेरे हाथों में है बस ज़र्रों सा दामन..
बचा लो कोई कहीं मैं गीर  न जाऊं थामलो मुझे कहीं बह न जाऊं


कहाँ हैं वो मुफ्ती कहाँ हैं वो पंडित
कहाँ हैं वो बेचैन राहें कहाँ हैं वो सूखी आन्हें
कहाँ हैं वो दर्याका पानी कहाँ हैं वो धुप सुहानी
कहाँ हैं वो प्यारा सा दामन कहाँ हैं वो ममता कि मूरत
कहाँ हैं वो मोहाब्बत नज़ाकत कहाँ हैं वो उल्फत और रौनक
कहाँ है वो मेरी हस्ती कहाँ है वो मेरी बस्ती
कहाँ हैं वो हुआ कि बेटी कहाँ हैं वो पैघम्बर की उम्मत
कहाँ हैं वो खुशीयान का आँगन कहाँ हैं वो सुरों का संगम
कहाँ हैं वो धीमी सी दस्तक कहाँ हैं वो आवाज़ सुरीली
कहाँ हैं वो सारे जो थे अपने कहाँ हैं वो सारे टूटे सपने
कहाँ हैं वो पर्दा कहाँ हैं वो खुदा के सामने सजदा
कहाँ हैं वो बच्चों की कील्कारीयाअँ कहाँ हैं वो ईद मीलान की सेवैन्याँ
कहाँ हैं वो धानी चूडियाँ कहाँ हैं वो बहनों की गुडीयाँ
कहाँ हीं वो तड़पते भूखे कहाँ हैं वो होठ सूखे
कहाँ हैं वो प्यार के नाघ्में कहाँ हैं वो खूबसूरत लम्हें
कहाँ हैं वो फूलों पे भवरे कहाँ हैं वो समुन्दर की  लहरें
कहाँ हैं वो बारिश कि बूँदें कहाँ हैं वो जो इन सब को ढूंढें
खो गए हैं ये सब कहीं इस भीड़ में इस बाज़ार में

जहाँ हैं सीर्फ़ दलील झूठी जहाँ हैं सीर्फ इमान खोटी
जहाँ हैं सीर्फ लूटेरों का बसेरा जहाँ हैं सीर्फ उन्हीं का सवेरा
जहाँ हैं सीर्फ इंसानों में बेईमानी जहाँ हैं सीर्फ हरकत शैतानी
जहाँ हैं सीर्फ माकारी के पुतले जहाँ हैं सीर्फ अय्यारी के पुतले
जहाँ हैं सीर्फ पैसों कि बोली कहाँ हैं सीर्फ ग़रीबों कि गार्डन पे डोरी
जहाँ हैं सीर्फ बहकती निगाहें जहाँ हैं सीर्फ मिलती है तानें
जहाँ हैं सीर्फ खून के चीते जहाँ हैं सीर्फ लोग मे को ही पीते
जहाँ हैं सीर्फ मस्जिदों में बेनमाजी जहाँ हैं सीर्फ मंदिरों में शराबी


बचा लो बचा लो बचा लो उन्हें
पुकारो पुकारो पुकारो उन्हें
संभालो संभालो संभालो उन्हें


ये कैसी है आंधी ये कैसा है मौसम, मेरे हाथों में है बस ज़र्रों सा दमन..
बचा लो कोई कहीं मैं गीर न जाऊं संभालो मुझे कहीं बह न जाऊँ

अज़मी

1 comments:

  Anonymous

Tuesday, November 13, 2007

u rock feroz...i am so proud to be your friend..and so jealous that you are God gifted...how well you write..it gives me goosebums...